ब्राह्मण ग्रन्थ - ধর্ম্মতত্ত্ব

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স্বাগতম

ब्राह्मण ग्रन्थ

 महर्षि दयानन्द ने ब्राह्मण ग्रन्थ बताने के लिए अपनी पुस्तक अनुभ्रमोच्छेदन में लिखा है-

 ‘‘जिससे ये ऐतरेय आदि ग्रन्थ ब्रह्म अर्थात् वेदों के व्याख्यान भाग हैं, अर्थात् ब्रह्मणां वेदानामिमानि व्याख्यानानि ब्राह्मणानि। अर्थात् शेष भूतानि सन्तीति।’’ इससे महर्षि कहना चाहते हैं कि जो ऐतरेय आदि वेद मन्त्रों की व्याख्या करने वाले ग्रन्थ हैं, वे ब्राह्मण ग्रन्थ कहलाते हैं। और भी-

‘‘वेद का अपर नाम ब्रह्म है। -शतपथ ७.१.१५ में कहा है- ‘ब्रह्म वै मन्त्रः’’, अतः वेद मन्त्रों की व्याख्या प्रस्तुत करने वाले ग्रन्थों की ब्राह्मण संज्ञा है। ‘ब्रह्म’ श       द का अर्थ यज्ञ भी है। इस आधार पर मन्त्रों की व्याख्या करने के साथ-साथ यज्ञ में उनका विनियोग करने तथा कर्मकाण्ड की व्याख्या एवं विवरण प्रस्तुत करने के कारण भी उन्हें ब्राह्मण नाम से अभिहित किया गया है। भट्टभास्कर ने कर्मकाण्ड तथा मन्त्रों की व्याख्या करने वाले ग्रन्थों क ो ब्राह्मण कहा है- ‘ब्राह्मणं नाम कर्मणस्तन्मन्त्राणां व्याख्यानग्रन्थः’ – तै    िारीय संहिता १.५.१का भाष्य।’’ स.भा ब्राह्मण ग्रन्थों के ही अपर नाम इतिहास, पुराण, कल्प, गाथा और नाराशंसी हैं। इन ब्राह्मण ग्रन्थों में जो (देवासुराः संप ाा आसन्) अर्थात् देव (विद्वान्) असुर (मूर्ख) ये दोनों युद्ध करने को तत्पर हुए थे- इत्यादि कथा भाग है, उसका इतिहास नाम है, जिसमें ‘सदेव सोम्येदमग्र आसीदेकमेवाद्वितीयम्’, ‘आत्मा वा इदमेकमेवाग्र आसीन्नान्यत् किंचन मिषत्’ ‘आपो ह वा इदमग्रे सलिलमेवास’, ‘इदं वा अग्रे नैव किंचिदासीत्।’ इस प्रकार के वर्णन पूर्वक जगत् की उत्प    िा को कहा है, वह भाग पुराण कहलाता है। ‘‘कतपा मन्त्रार्थसामर्थ्यप्रकाशकाः।

’’ जो वेदमन्त्रों के अर्थ अर्थात् जिनमें द्रव्यों के सामर्थ्य का कथन किया है, उनका नाम कल्प है। इसी प्रकार शतपथ ब्राह्मण में याज्ञवल्क्य, जनक, गार्गी, मैत्रेयी आदि की कथाओं का नाम ‘गाथा’ है। जिनमें नर अर्थात् मनुष्यों ने ईश्वर, धर्मादि पदार्थ विद्याओं और मनुष्यों की प्रशंसा की है, उनको नाराशंसी कहते हैं। यह वर्णन महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद संज्ञा विचार प्रकरण में किया है। अब आपके मूल प्रश्न पर आते हैं- ब्राह्मण ग्रन्थ कितने हैं? आज वर्तमान में चार ब्राह्मण मुख्य रूप से प्रचलित हैं, किन्तु ब्राह्मणों की संख्या इतनी ही है, ऐसा नहीं है। विद्वानों का ऐसा मानना है कि वेद की सभी शाखाओं के अपने-अपने ब्राह्मण थे। उनमें से अनेकों के आज नाम तक ज्ञात नहीं हैं। जो ब्राह्मण आज उपल   ध हैं वे लगभग अठारह हैं और जो उपलध नहीं हैं, केवल जिनके नामों का पता मिलता है, उनकी संख्या लगभग इक्कीस है। इन ब्राह्मण ग्रन्थों, लेखकों अथवा प्रवक्ताओं के नाम कुछ को छोड़कर प्रायः नहीं मिलते हैं। इसमें कारण ऋषियों की यश कामना से रहितता होना लगता है।

 प्रसिद्ध प्रचलित चार ब्राह्मण ऐतरेय, शतपथ, ताण्ड्य और गोपथ ब्राह्मण हैं। अब कौन-सा ब्राह्मण किस वेद का है, उस वेद के कितने ब्राह्मण हैं यह लिखते हैं।

 ऋग्वेद के मुख्य तीन ब्राह्मण हैं-

 १. ऐतरेय ब्राह्मण :इस ब्राह्मण का प्रवक्ता इतरा का पुत्र ऐतरेय महीदास था। इस ऐतरेय ब्राह्मण में आठ पंचिकाएँ हैं। प्रत्येक पंचिका में पाँच अध्याय हैं। सम्पूर्ण ब्राह्मण में चालीस अध्याय हैं।

 २. कौषीतकि ब्राह्मण :इस ग्रन्थ का परिमाण तीस अध्यायों का है। इस ग्रन्थ के प्रवचनक     र्ाा कौषीतकि अथवा शाङ्खायन इन दोनों में से कोई एक है, ऐसी विद्वानों की मान्यता है।

 ३. शाङ्खायन ब्राह्मणः इस ग्रन्थ में तीस अध्याय हैं। इस ग्रन्थ के नाम से पता लगता है कि इसके प्रणेता शाङ्खायन रहे होंगे। 

यजुर्वेद के भी तीन ब्राह्मण उपल    ध होते हैं- 

१. माध्यन्दिन शतपथ ब्राह्मण :यह ब्राह्मण सबसे अधिक प्रचलन में है । इसके नाम के अनुसार इसमें एक सौ अध्याय हैं। इस ब्राह्मण में चौदह काण्ड, एक सौ अध्याय, चार सौ अड़तीस ब्राह्मण और सात हजार छः सौ चौबीस कण्डिकाएँ हैं। इसका दूसरा नाम वाजसनेय ब्राह्मण भी मिलता है। इसके रचयिता महर्षि याज्ञवल्क्य रहे हैं। 

२. काण्व शतपथ ब्राह्मणः इस ब्राह्मण के काण्ड विभाग या वाक्य रचना के स्वतन्त्र भेद को छोड़कर यह ब्राह्मण माध्यन्दिन शतपथ के समान ही है। इसमें एक सौ चार अध्याय, चार सौ चवालीस ब्राह्मण और पाँच हजार आठ सौ पैंसठ कण्डिकाएँ हैं।

 ३. कृष्ण यजुर्वेदीय तै       िारीय ब्राह्मणः इस ब्राह्मण का संकलन वेशम्पायन के शिष्य ति िारि ने किया था। इस ब्राह्मण में तीन अष्टक हैं। सामवेद के ग्यारह ब्राह्मण मिलते हैं-

 १. ताण्ड्य ब्राह्मण-सामवेद का यह ब्राह्मण मुख्य रूप से प्रचलित है। इसका संकलन सामविधान ब्राह्मण (२.९३) के अनुसार ताण्डि नामक एक आचार्य ने किया था। इसमें पच्चीस प्रपाठक और तीन सौ सैंतालीस खण्ड हैं। 

२. षड्विंश ब्राह्मण-इस ब्राह्मण का संकलन भी विद्वान् लोग आचार्य ताण्डि अथवा उनके निकटवर्ती शिष्यों के द्वारा किया गया मानते हैं। इस ब्राह्मण में पाँच प्रपाठक और अड़तालीस खण्ड हैं। ३. मन्त्र ब्राह्मण-इस ब्राह्मण का परिमाण दो प्रपाठकों और सोलह खण्डों का है। 

४. दैवत अथवा देवताध्याय ब्राह्मण-दैवत ब्राह्मण का दूसरा नाम देवताध्याय ब्राह्मण है। यह ब्राह्मण आकार की दृष्टि से छोटा-सा ही है, इसके केवल तीन खण्ड व बासठ कण्डिकाएँ हैं। 

५. आर्षेय ब्राह्मण-यह ब्राह्मण सामवेद की कौथुम शाखा को मानने वालों का ही है। इसमें सामवेद के सामगान के नामों का मुख्यतः वर्णन है। इसमें तीन प्रपाठक और बयासी खण्ड हैं। 

६. सामविधान ब्राह्मण-इस ब्राह्मण में अभिचार आदि कर्मों का बहुत वर्णन है। इसमें तीन प्रपाठक व पच्चीस खण्ड हैं।

 ७. संहितोपनिषद् ब्राह्मण-यह बहुत छोटा-सा है। सारा ही एक प्रपाठक और पाँच खण्डों का है। इस ब्राह्मण में सामवेद के अरण्य गान व ग्रामगेय गान का वर्णन है।

 ८. वंश ब्राह्मण-यह भी लघु ही है, केवल तीन खण्ड का ही है। इसमें सामवेद के आचार्यों की वंश परम्परा दी गई है। 

९. जैमिनीय ब्राह्मण-इस ब्राह्मण का संकलन महर्षि व्यास के प्रसिद्ध शिष्य सामवेद के आचार्य जैमिनी और उनके शिष्य तवलकार का किया हुआ है। इसके मुख्य तीन भाग है। पहले में तीन सौ साठ खण्ड, दूसरे में चार सौ सैंतीस  और तीसरे में तीन सौ पिच्चासी खण्ड हैं। 

१०. जैमिनीय आर्षेय और ११. जैमिनीयोपनिषद्  ब्राह्मण-ये ग्यारह सामवेद के ब्राह्मण मिलते हैं। अथर्ववेद का एक ही ब्राह्मण ‘गोपथ ब्राह्मण’उपल   ध होता है। इस ब्राह्मण के पूर्व और उ   ार दो भाग हैं। पूर्व भाग में पाँच प्रपाठक और उ    ार में छः प्रपाठक हैं, कुल मिलाकर ग्यारह प्रपाठक का यह ब्राह्मण है। इसमें एक ही स्थान पर बहुत यज्ञों के नाम लिखे हुए हैं। इसमें मन्त्र, कल्प, ब्राह्मण का एक ही स्थान पर उल्लेख है। इसके पूर्व भाग में विपाट् नदी के मध्य में बड़ी-बड़ी शिलाओं पर वशिष्ठ के आश्रमों का वर्णन है। यह अनेक प्राचीन साम्राज्यों का कथन करता है। यही ब्राह्मण ओंकार की तीन मात्राओं का वर्णन करता है। चारों वेदों के ये अठारह ब्राह्मण उपल       ध हैं। इनका विषय है- आत्मा का अस्तित्व और पुनर्जन्म, अमर आत्मा, परमेश्वर (प्रजापति), तीन लोक, मानव आयु व उसके पूर्ण भोगने के उपाय, सुखी गृहस्थ, गृहस्थ में स्त्री का स्थान, विवाह, सत्य, पाप का स्वरूप, यज्ञ का स्वरूप, यज्ञों के मुख्य भेद, यज्ञ तथा पाप विमोचन, यज्ञ और बलिदान व देवता, आपः (जल) का विषय, हिरण्यगर्भ= तेजोमय महद्अण्ड का वर्णन, अग्नि का स्वरूप, वृष्टि का वर्णन, वर्षा, समुद्र, सूर्य, प्राणायाम का कथन, पृथिवी का इतिहास अर्थात् आर्द्रा (शिथिल पृथिवी), आर्द्रा पृथिवी पर क्रमशः सृष्टियाँ – फेन, मृत ऊष, सिकता, शर्करा, अश्मा, अयः और हिरण्यम् औषधि वनस्पति का प्रादुर्भाव, आग्नेयी पृथिवी, अग्निगर्भा पृथिवी, परिमण्डला पृथिवी, अयस्मयी पृथिवी, सर्व राज्ञी पृथिवी आदि, अन्तरिक्ष मरुत, अन्तरिक्षस्थ पशु, धातुओं को टाँका लगाना, रेखागणित व स्वर्ग- ये इतने सारे इन ब्राह्मण ग्रन्थों के विषय हैं, अर्थात् इतने विषयों का ज्ञान कराने वाले ये हैं। कुछ अनुपल ध ब्राह्मण ग्रन्थों के नाम भी मिलते हैं, इनके विषय में विस्तार से जानने के लिए विद्वान् पण्डित भगवद्द   ा जी द्वारा लिखित विशेष ग्रन्थ ‘वैदिक वाङ्मय का इतिहास’ तृतीय खण्ड देखना चाहिए। हमने भी यह सब इसी ग्रन्थ को देखकर लिखा है।


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